पुस्तके
जॉन फिलिप्स एक महान कलाकार हैं , कागज़ उनके कैनवास, शब्द उनके रंग एवं कलम उनकी कूची है. इन औजारों से उन्होंने खोजपूर्ण टीके एवं परमेश्वर के वचन से अनेक पुस्तकों एवं सशक्त संदेशों की रचना की है . जॉन फिलिप्स के संसाधन उनके साथी पादरी शिक्षक व बाइबिल के शिष्य रहें हैं एवं जहाँ से भी लोग उनके पास सलाह प्रकाशन उदाहरण एवं अनुप्रास के अंतिम प्रयोग के लिए आये वे कभी भी निराश नहीं हुये.
रोमियों की पत्री को गहनता से खोजना : जॉन फिलिप टीका श्रंखला
दैनिक मसीह जीवन के ऊपर व्यवहारिक हस्तपुस्तिका के तौर पर यह पुस्तिका हर सेवक के लिए उसके अपने पुस्तकालय में संदर्भ के तौर पर रखने पर काफी मूल्यवान साबित होगी , तथा धर्मशास्त्र का हर छात्र भी अध्ययन के लिए इसे काफी मूल्यवान क्षेत्र पाएगा । रोमियों की पत्री को अक्सर बाइबिल के पूर्ण सुसमाचार की राजनैतिक प्रस्तुति के तौर पर संदर्भित किया गया है, और यह पुस्तक इस विचार की बहुत सोची व व्यवहारिक टीका है । यहाँ पर पूर्ण उद्धार के संदेश के दिल / केंद्र को खूबसूरत तरीके से खोला गया है । रोमियों 6-8 सिर्फ आध्यातमिक युद्धक्षेत्र नहीं है , परन्तु मसीह में विजयी जीवन के आधार की स्पष्ट प्रस्तुति है , वस्तुतः हमारा ख्रीस्त की मृत्यु एवं पुनुरुत्थान में एकीकार होना ।
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व्याख्यात्मक प्रचार का दूसरा नाम जॉन फिलिप्स है. वह वचन के प्रति अपनी विश्वाश्योग्यता, लेखो का मिश्रण करने, तथा भरपूर सारगर्भित व्याख्यान देने के लिए जाने जाते है. अब अपने लिए परमेश्वर के वचन का अनुभव आप ऍम पी थ्री पर डिजिटल फाइल डाउनलोड के माध्यम से उपलब्ध विभिन्न संगति संदेशों के द्वारा कर सकते है.
रोमियों की पत्री को गहनता से खोजना : जॉन फिलिप टीका श्रंखला
दैनिक मसीह जीवन के ऊपर व्यवहारिक हस्तपुस्तिका के तौर पर यह पुस्तिका हर सेवक के लिए उसके अपने पुस्तकालय में संदर्भ के तौर पर रखने पर काफी मूल्यवान साबित होगी , तथा धर्मशास्त्र का हर छात्र भी अध्ययन के लिए इसे काफी मूल्यवान क्षेत्र पाएगा । रोमियों की पत्री को अक्सर बाइबिल के पूर्ण सुसमाचार की राजनैतिक प्रस्तुति के तौर पर संदर्भित किया गया है, और यह पुस्तक इस विचार की बहुत सोची व व्यवहारिक टीका है । यहाँ पर पूर्ण उद्धार के संदेश के दिल / केंद्र को खूबसूरत तरीके से खोला गया है । रोमियों 6-8 सिर्फ आध्यातमिक युद्धक्षेत्र नहीं है , परन्तु मसीह में विजयी जीवन के आधार की स्पष्ट प्रस्तुति है , वस्तुतः हमारा ख्रीस्त की मृत्यु एवं पुनुरुत्थान में एकीकार होना ।
भक्तिपूर्ण ध्यान मनन
एक मसीही के लिए प्रतिदिन भक्तिपूर्ण ध्यान मनन का समय , परमेश्वर के साथ उसके अन्तरंग संबंध के लिए अत्यंत आवश्यक है । वचन पर मनन एवं प्रार्थना का यही समय विश्वासी के लिए महत्वपूर्ण होता है, जब वह जीवन की यात्रा के लिए बाइबिल सम्बन्धी ज्ञान व सामर्थ प्राप्त करता है ।
ये भक्तिपूर्ण ध्यान मनन विश्वासियों की सहायता करते हैं, जब वे परमेश्वर के वचन पर मनन करते हैं एवं बाइबिल सम्बन्धी सूक्ष्म ज्ञान की खोज करते हैं । डॉ. जॉन फिलिप्स बाइबिल संबंधी सच्चाई के ज़ेवरात को प्रस्तुत करने के लिए प्रख्यात हैं । इन भक्तिपूर्ण ध्यान मनन की विषय वस्तु ऐसे व्यक्ति का प्रतिबिम्ब है, जिसने परमेश्वर के साथ परमेश्वर के वचन पर दावत करते हुए अवर्णित घंटे बिताए हैं। धर्मशास्त्र पर डॉ फिलिप्स के द्वारा रचित इन मननों में सहभागी होने के कारण आप आशीषित , प्रोत्साहित हों एवं यह आपके लिए चुनौतीपूर्ण हो।
हमने स्वर्गदूतों को चरनी के पालने में देखते हुये देखा तथा निर्जन स्थान के युद्ध को देखते हुये पाया। अब हम उन्हें गतसमनी के विहार में देखने की इच्छा रखते हुये पाते हैं ।
यरूशलेम के ठीक बाहर, जैतून पर्वत के डाल पर और बिलकुल ठीक किद्रोंन को ठीक पार कर के, एक घेरेदार बगीचा था । यह प्राचीन वृक्षों का स्थान था । उनके बड़े घुमावदार तने और फैली हुई टहनियां फल – फूलों से लदी रहती तथा एक प्राकृतिक विहार का निर्माण करतीं, जहाँ पर जीवन के दबावों से मुक्त होकर जिया जा सकता है । यीशु को वहाँ जाना बहुत प्रिय लगता था, उस जगह का नाम गतसमनी था जिसका तात्पर्य है –“तेल से भरा हुआ” । यह वह जगह थी जहाँ पर प्रभु अपनी मृत्यु से पूर्व गया वे वहाँ पर नज़र रखने तथा विलाप करने तथा प्रार्थना करने गया था ।
पहले वह एक पत्थर फेंकने की दूरी पर अपने तीन सबसे प्रिय मित्रों से अलग चला गया (लूका 22 : 41 ) “ एक पत्थर फेंकने की जितनी दूरी” , मुहावरे के साथ एक अपशगुन जुड़ा हुआ है । यहूदी लोग अपराधियों को पत्थरवाह कर के मृत्यु दण्ड देते थे । अत: “ एक पत्थर फेंकने जितनी दूरी” मृत्यु से जितनी दूरी है उसका पर्याय थी । यीशु मसीह मृत्यु से केवल एक पत्थर फेंकने जितनी दूरी पर था ।
मरकुस ने बिना किसी संदेह के पतरस के वर्णन को यह कहते हुये प्रस्तुत किया है कि ख्रीस्त “बहुत बोझ से दबे हुये मालुम होते थे” (मरकुस 14 :33 ) । जिस शब्द का उसने इस्तेमाल किया है उसका अर्थ है “अवसादग्रस्त” । इसके बारे में विचार करके देखो ! यीशु, सब चीजों पर विजय पाने वाला ख्रीस्त जिसके कि नियंत्रण में हर स्थिति रहती थी, वह अब अवसादग्रस्त था! थोड़े ही समय पूर्व उसने अटारी पर इब्रानी में हल्लेलुय्याह गीत गाया था । अब वह हमारे पापों के विचार से दबा हुआ पीड़ा से कराह रहा था, साथ ही मरकुस हमें बताते हैं कि वह अत्याधिक “आश्चर्यचकित” अथवा “(अत्यधिक विस्मित )” था । यह वर्णन हमें केवल मरकुस के सुसमाचार में मिलता है तथा वह उसको तीन बार बताता है । उसने इस शब्द का इस्तेमाल रूपांतरण के पर्वत पर उनलोगों का विवरण देने के लिए इस्तेमाल किया है , जो की प्रभु के स्वर्ग के साथ सीधा संबंध होने और उसके मध्य पहुंचने के चमक से भर गये (मरकुस 9 :15 ) वह इस शब्द का इस्तेमाल फिर से, ख्रीस्त की खाली कब्र पर स्वर्गदूतों के प्रगट होने के संदर्भ में करता है । यह शब्द उन महिलाओं के प्रतियुत्तर का विवरण देता है । वह सभी भयभीत हो गयीं थीं या भय में जकड़ गयीं थीं ( मरकुस 16 : 5 ) । और अब मरकुस इस शब्द का इस्तेमाल बगीचे में प्रभु के दुःख का विवरण देने के लिए कर रहा है । उन दोनों दुसरे संदर्भों में (महिला की चमक जो की उसके चेहरे पर थी जब वह पर्वत से नीचे आया, तथा उसकी चमक जो की कब्र की रखवाली करता था) शब्द का संबंध दूसरी दुनिया से है । वही चीज़ यहाँ पर भी लागू होती है जैसे ही उसने अंधकार में देखा और जब उसको वह कटोरा प्रस्तुत किया गया तो वह संसार के उस बुराई जिसको की उसे ग्रहण करना था देखकर व्याकुल हो उठा था । इस पुराने गीत में विचारों की झलक मिलती है ।
हे प्रभु तू कितनी पीड़ा में था ,
ये तो हमारे गुनाहों का बोझ था,
हमारे ऊपर बढ़ा हुआ था क़र्ज़,
जिसको अपने खून से था तूने चुकाया ।
स्वर्गदूत इन सभी घटनाक्रम को देखने की इच्छा रखते थे यह सब उनकी समझ से परे था- की उनके प्रिय ने हमारे पापों के छल और भयावहता को ऐसा ग्रहण किया कि हमारे लिए वह वास्तव में “पाप बन गया” ।
और जब ऐसा हुआ कि गतसमनी में वह भविष्य में क्या होने वाला सोचकर , मृत्यु की निकटता में आया , तो स्वर्गदूत उसको सामर्थ प्रदान करने के लिए आये । उसे वहाँ बगीचे में निश्चय ही वहीँ मरना चाहिए , क्योंकि उसे तो खोपड़ीनुमा पहाड़ी जो कि कलवरी कहलाती है पर मरना है ।
इसीलिए स्वर्गदूत आये । उन्होंने उसकी सेवा की ओर फिर , दुःख से भरे हुये , वह घर को लौट गये । और फिर से स्वर्गदूतों ने उसके चारों ओर घेरा डाल लिया । “ आप कहते हो वह अकेला था ? क्या आदम की जाति का कोई भी एक जन उसके माथे के पसीने को पोंछने के लिए तथा उसका हाथ पकड़ने के लिए नहीं था” ? सेवा करने वाले स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया होगा, “हमने थोड़ी ही दूर पर तीन आदमियों को देखा था” । “वे उसके मित्र थे- और वे उन्हें पतरस, याकूब और यहुन्ना बुलाता था । पर वे गहरी नींद में थे” ।
अत: पतरस , याकूब और यहुन्ना ने जीवन में कभी-कभार मिलने वाले इस अवसर को खो दिया, जब वह प्रभु कि ज़रुरत वाले क्षण में उनकी सेवा कर सकते थे । कितनी बार, कोई सोचता है कि हमने इसी प्रकार के उन अवसरों को खो दिया की जब हम उचच प्रशिस्त एवं अंनत पुरूस्कार जीत सकते थे ।
स्वर्गदूतों ने सूखी घास के बीच पालने में झाँका । यह उनके लिए एक परम रुचि की घटना थी । परमेश्वर मनुष्य बने यह आश्चर्यजनक था । परन्तु उसका इस प्रक्रिया से , इस उदेश्य के लिए तथा इस प्रकार की जगह पर मनुष्य बनना वास्तव में विस्मयकारी था ।
तीस वर्ष बीतने के बाद हमें वह अगली चीज़ बतायी जाती है जिसे स्वर्गदूत देखने की इच्छा रखते थे । हालांकि, नि:संदेह परमेश्वर का कोई कार्य , कोई शब्द तथा कोई इच्छा उनमें रुचि जगाने में असफल ना रही होगी । इन छुपे हुए, खामोश वर्षों के विषय में हज़ारों किताबें लिखी जा सकतीं हैं । उन तीस वर्षों की गतिविधियाँ हमारे लिए अज्ञात है । परन्तु स्वर्गदूत उसके जन्म के क्षण से लेकर यहुन्ना द्वारा उसको बप्तिस्मा दिए जाने के क्षण तक को विस्मय से देखते और सुनते रहे ।
फिर बदलाव का एक अगला बिंदु आता है – निर्जन स्थान में संघर्ष की घटना । स्वर्गदूत पाप और शैतान के विषय में जानते थे क्योंकि “अधर्म के बड़े रहस्य” की पूर्ण शुरुआत स्वर्ग में हुई थी , ना की पृथ्वी पर । इससे अधिक लूसीफर भी पृथ्वी पर अपने भटकने का हिसाब देने के लिए परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष उपस्थित होने का बुलावा मिलने पर उस उच्च स्थान में समय समय पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराता है ।
मनुष्य के अदन की वाटिका में गिरने के तुरंत बाद (उत्पत्ति 3:24) कुछ करूबों की श्रेणी के स्वर्गदूतों ने वाटिका के फाटकों पर संतरी की ज़िम्मेदारी निभायी, वे वहाँ पर “जीवन के वृक्ष को” जाने वाले मार्ग की निगरानी करने को नियुक्त हुए थे । इसका तात्पर्य है कि मनुष्य के गिरने की घटना ऊपर तक पहुँच गई थी । इस खबर के बाद की एक नया संघर्ष जन्म लेने वाला है, स्वर्गदूतों की रुचि और गहरा गयी थी । एक दूसरा आदमी जो की अंतिम आदम है तमाम विपरीत परिस्थितियों में गिरे हुये लूसीफर पर विजयी होता जा रहा है । पवित्र जन शैतान से उस सुनसान निर्जन प्रदेश में तब अकेला मिलेगा जब की वह मृत्यु के द्वार तक उपवास कर चुका होगा, उसकी सारी शारीरिक सामर्थ खत्म हो चुकी होगी तथा उसके प्राण एक धागे से अटके होंगे । उस अदन के वन एवं घाटी से जहाँ की आदम गिरा था , यह नज़ारा एकदम अलग होने जा रहा था ।
यरीहों के पीछे , यार्दन के भीतर तक धंसा हुआ , समुद्र तल से काफी नीचे पर , परीक्षा का पहाड़ खड़ा था । पर्वतारोही पायेगा की उस चढ़ाई पर हर एक कदम चढ़ने के साथ द्रश्य बद से बदतर हो जाते थे । चारों ओर की वीरानी श्रापित भूमि के समान थी । पहाड़ स्वयं सूखा और गंजा था । वह एक अभिशप्त पहाड़ था । सूर्य से जले हुये मैदानी भाग से उसकी सीधी कड़ी चोटियाँ थी और दूसरी तरफ डूबे हुये सदोम के समुद्र का दलदली पानी था । वे उसको मृत सागर पुकारते थे, और यह नाम उसके अनुरूप था ।
युद्ध प्रारम्भ होता है । यह चरम अवस्था में उन्ही तीन प्रलोभनों के साथ , परन्तु एक अलग भेष में प्रस्तुत होता है जिन्होंने पहले हव्वा को और फिर आदम को जीता था –शरीर की अभिलाषा, आँख की अभिलाषा, तथा जीवन का घमंड । स्वर्गदूत पीछे ही ठहरे रहे। यह उनकी लड़ाई नहीं थी । उनके द्वारा इसमें कोई दखल नहीं दिया जाता था । परन्तु स्वर्गदूत कितने प्रसन्न होते थे जब शैतान बार बार हारता और अंत में द्रश्य से गायब हो गया । तब तक तो नहीं परन्तु अब, परमेश्वर थके हुये विजेता की सेवा के लिए स्वर्गदूतों को भेजता है ।
आखिरकार स्वर्गदूतों ने अपने स्वामी को सारी तकलीफों के अंतिम सिरे पर पा लिया : शारीरिक, नैतिक एवं आत्मिक। वह वहाँ पर अकेला , थका हुआ एवं कमज़ोर किन्तु विजयी लेटा हुआ था । क्या ऐसा हो सकता है ? क्या वो वहीँ था ? हाँ वह वहीँ था । मनुष्य का पुत्र , विजयी , महिमा एवं सम्मान का मुकुट पहिने हुये ।
“हैलो जिब्राएल “! निश्चय ही इसी प्रकार का कोई स्वागत शब्द उद्धारकर्ता के होठों से निकला होगा । जिन स्वर्गदूतों के नाम नहीं मालूम है उन्होंने उसकी सेवा की , संभवत :एक चमकदार स्वच्छ नदी से पीने का पानी दिया, या बिस्तर लगाया हो, या उसके सोने के दौरान तलवार लेकर उसकी पहरेदारी कर रहे थे । इसमें कोई संदेह नहीं की जब ये विशिष्ट स्वर्गदूत वापस पहुंचे होंगे तो दूसरे स्वर्दूतों के पास बहुत सारे प्रश्न होंगे । “परन्तु वहाँ पर क्या उसका ध्यान रखने के लिए कोई मनुष्य ना थे” ? उसके मित्र उसके परिवार के लोग कहाँ थे ? नहीं ! वहाँ पर कोई नहीं था ।
उसने वह युद्ध अकेला लड़ा , और वह विजयी हुआ ! और शैतान किसी अँधेरे कोने में बैठा हुआ कुढ़ता तथा इस बात को भली भांति जानता होगा कि आखिर में उसकी उसके जोड़ से मुलाक़ात हो गयी थी । और वह भयभीत था ।
दान
कर दिया गया है, जहां दुनिया की विशेष रूप से तीसरी दुनिया के देशों के दौरान डॉ फिलिप्स ‘टिप्पणियों उपलब्ध बनाने के लिए जॉन फिलिप्स मंत्रालयों इंटरनेशनल का लक्ष्य है। भगवान आर्थिक रूप से सक्षम बनाता है हमें के रूप में हम कई भाषाओं में डॉ फिलिप्स ‘पुस्तकों के कई अनुवाद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम तो नेतृत्व कर रहे हैं, जो भगवान के लोगों, इस रोमांचक और योग्य प्रयास में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। सभी अंशदान पर टैक्स से छूट प्राप्त है।